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काम पड़ा है / महेश उपाध्याय

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दो अदद थकान के
पहाड़ों के बीच
घाटी-सा काम पड़ा है

कमरे के चेहरे पर
         आब नहीं
अधजले उदास कई क्षण पड़े
इधर-उधर
जिनका कोई कहीं
         हिसाब नहीं

चाँदी के तारों से
कसा हुआ दिन
कितना मायूस खड़ा है ?
घर भर में काम पड़ा है ।