भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहै न रंचक राग-रति / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 24 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  (राग माँड़-ताल कहरवा)

 रहै न रंचक राग-रति, माया-ममता-मोह।
 हो निमग्र मन सुधानिधि-पदानन्द-संदोह॥
 मन-मिलिन्द रहै पान-रत पद-पंकज मकरन्द।
 नित्य निरंकुश निशि-दिवस निरवधि निलि निर्द्वन्द॥
 रहै न मन ही मन बन्यौ, बनै तुहारौ यन्त्र।
 तुम यन्त्री फ़ूँको सदा निज मनमाने मन्त्र॥