भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुन्यो तेरो पतित-पावन नाम! / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:37, 24 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  (राग मलार-ताल रूपक)

 सुन्यो तेरो पतित-पावन नाम!
 अजामिल-से पतितको तैं दियो अपनो धाम॥
 याध-खग-मृग जे रहे नित धरम तें उपराम।
 किये पावन अति पतित ते भये पूरन-काम॥
 कठिन कलि के काल अपि तारे अनेक कुंठाम।
 धरमहीन, मलीन, पातक निरत आठों जाम॥
 पाप करत उछाह-जुत, मम मन न लीन्ह बिराम।
 तदपि अजहुँ न मोहि तार्‌यौ, किमि बिसार्‌यौ नाम॥