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काव्य जगत का अनमोल मोती / राजेन्द्र नाथ रहबर / रविकांत अनमोल

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श्री रवि कांत अनमोल केवल नाम से ही अनमोल नहीं हैं बल्कि हिन्दी काव्य जगत के सचमुच के अनमोल मोती हैं और इस बात के साक्षी हैं वो शे'र जो उनके काव्य संग्रह के हर पन्ने पर आबदार मोतियों की तरह बिखरे पड़े हैं। उनके प्रस्तावित काव्य संग्रह का मुसव्वदा( मसौदा) पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ तो अंदाज़ा हुआ कि ये एक ऐसे शायर का कलाम है जो आम रविश से हट कर लिख रहा है और भीड़ से अलग अपनी एक पहचान बनाए हुए है। उन के कलाम में ताज़गी की एक दुन्‌या आबाद है और पाठक महसूस करता है कि वह ताज़ा फ़ज़ाओं में साँस ले रहा है। उन का कलाम पढ़ने पर फ़िक्र के नये-नये दरीचे खुलते हुए महसूस होते हैं। कहीं घुटन का अहसास नहीं होता। उनकी शायराना ख़ुश-सलीक़गी, ख़ुशबयानी, ख़ुश उस्लूबी और ख़ुशनुमाई प्रभावित करती है। वह घिसे पिटे और शताब्दियों के रौंदे हुए सिक्काबंद ख़्यालात की फ़ार्मूला शायरी नहीं करते और नये और अछूते ख़्यालात को अपने कलाम में स्थान देते हैं। उन्होंने आज के इंसान को दरपेश मसअलों और उन तमाम विषयों पर कलम उठाया है जो हर दौर में शायरों के मन पसंद विषय रहे हैं। उन का कलाम पढ़ कर रूह की गहराइयों में बहने वाले नर्म-रौ झरनों का मधुर तरन्नुम सुनाई देता है और साथ ही नैचुरल और बनावटी शायरी का फ़र्क़ नुमायां हो जाता है।

अनमोल जी ने ग़ज़लों के अलावा गीत और नज़्में भी लिखी हैं और वे इन अस्‌नाफ़े-सुख़न पर भी पूरी तरह क़ादिर हैं। इस काव्य संग्रह के एक गीत का मुखड़ा इस प्रकार है--

टहलते टहलते मिरे गाँव चलिए
कभी शाम ढलते मिरे गाँव चलिए

उन के गाँव के मंज़र बड़े दिल-नशीं बड़े दिल फ़रेब हैं और रास्ते भी सुहाने हैं। तभी तो वह अपने किसी हक़ीक़ी या काल्पनिक महबूब को गाँव आने के लिए आमंत्रित करते हैं और गाँव का सौंदर्य इन शब्दों में बयान करते हैं--

कहीं पेड़ दरिया किनारे मिलेंगे, बड़े प्यारे प्यारे नज़ारे मिलेंगे
बिदा हो रहे चाँद तारे मिलेंगे, कभी आँख मलते मिरे गाँव चलिए

गीत का शेष भाग भी इस प्रकार मन को छू लेने वाला है। गीत न उर्दू में न हिन्दी में न पंजाबी या किसी और भाषा में कामयाबी से लिखा जा सकता है। गीत फूल की भाषा में लिखा जाता है। गीत के लिए एक बेहद नर्म लहजे की ज़रूरत होती है जो अनमोल जी के हां पूरी तीव्रता के साथ मौजूद है।

अनमोल जी ने नज़्में भी कलमबन्द की हैं। एक नज़्म एक मासूम सी लड़की के बारे में है। फ़र्माते हैं-

वो इक मासूम सी लड़की बुज़ुर्ग़ों की दुआ जैसी
बड़ी भोली बड़ी प्यारी वो बच्चों की ख़ता जैसी

सारी नज़्म इसी प्रकार बड़ी रवानी के साथ चलती है।

अनमोल जी ने ग़ज़लें भी कही हैं और खूब कही हैं। उनकी शायरी का सफ़र जारी है और वे ख़ूब से ख़ूब-तर की तलाश में नई नई मंज़िलें तय करते जा रहे हैं। उन्हें अपने जज़्बों की सदाक़त पर पूरा भरोसा है। उन के ख़्यालात का कैनवस विशाल है जिस पर भिन्न भिन्न रंगों से मंज़र कशी करते रहते हैं। दर अस्ल उन की ग़ज़लों में उन की पूरी शायरी के मिज़ाज को समझने में मदद मिलती है। उन्होंने आसान भाषा इस्तेमाल की है। मुश्किल शब्दों के गोरखधन्धे में वे नहीं पड़े। छन्द शास्त्र पर उन की पकड़ मज़बूत है। उन के कलाम की फ़ज़ा यकसर हिन्दोस्तानी है। फ़र्माते हैं-

- सुरीली बांसुरी की धुन सुनाकर
   कहां राधा का मोहन खो गया है
- किसी राधा के मोहन हो गए हो
   किसी के दिल की धड़कन हो गए हो
- कुछ ऐसी तहज़ीब मिली है
   मह्‌मां से उठ कर मिलता हूँ

मीर तक़ी मीर का फ़र्मान है-

ख़ुश्क सेरों तने-शायर में लहू होता है
जब नज़र आती है इक मिसरा-ए-तर की सूरत

अब अनमोल जी का यह शेर देखें जिस में वे मीर के क़रीब होते हुए नज़र आते हैं -

दिल का लहू जला के ही होती है रौशनी
मिलती नहीं है दोस्तो ख़ैरात में ग़ज़ल

आख़िर में अनमोल जी के कुछ शे'र पेश करता हूँ जिन में शाइर की आत्मा को भिन्न-भिन्न रंगों में देखा जा सकता है-

तू क्या जाने ये मेरा दीवानापन
कितने सालों अश्क बहाने वाला है

मुझको है मालूम गुज़रता वक़्त अभी
रेत से मेरे नक़्श मिटाने वाला है

रोता हूँ तो तन्हाई में
लोगों से हँसकर मिलता हूँ

जहां की दौलतें तो मिल गई हैं
कहीं अख़लाक़ का धन खो गया है

भीड़ भरी दुनिया में इंसां
इतना तन्हा-तन्हा क्यूं है

महब्बत वफ़ा दोस्ती ग़मगुसारी
हमें ऐसे ऐसे बनाने हैं रिश्ते

यह क़िताब अनमोल जी की तपस्या का पहला फल है। ख़ुदा करे उनका फ़ानूसे-सुख़न जगमगाता रहे, रौशनी बखेरता रहे और उनके पाठक उनके सुन्दर विचारों से फ़ैज़याब होते रहें। आमीन॥
दिल्ली, ५ अक्तूबर २०१० राजेंद्र नाथ रहबर
(शिरोमणि उर्दू साहित्यकार, पंजाब सरकार)
१०८५-सराये मुहल्ला, पठानकोट -१४५००१
   मो.०९४१७०-६७१९१ फोन ०१८६-२२२७५२२
(मैंबर,गवर्निंग कौंसिल पंजाब उर्दू अकादमी २००६-०९)