भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द दिल में संभाल कर रखा / रविकांत अनमोल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 25 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकांत अनमोल |संग्रह=टहलते-टहलत...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द दिल में संभाल कर रक्खा
अपनी आँखों को मैंने तर रक्खा

मैंने देखी क़रीब से दुनिया
तूने मुझको जो दर-ब-दर रक्खा

मैंने तेरे बदन की ख़ुश्बू को
अपने गीतों में ढाल कर रक्खा

लग़्ज़िश आई न उसके क़दमों में
जिसने दिल में ख़ुदा का डर रक्खा

तेरी चौखट पे इस जनम हमने
पाँव रखना न था मगर रक्खा

हमने रख्खीं सहेज कर यादें
और लोगों ने सीमो-ज़र रक्खा