भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज नदी बिल्कुल उदास थी / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:04, 28 फ़रवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आज नदी बिल्कुल उदास थी,

सोई थी अपने पानी में,

उसके दर्पण पर

बादल का वस्त्र पड़ा था ।

मैंने उसको नहीं जगाया,

दबे पाँव घर वापस आया ।