आज नदी बिल्कुल उदास थी,
सोई थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर
बादल का वस्त्र पड़ा था ।
मैंने उसको नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया ।
आज नदी बिल्कुल उदास थी,
सोई थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर
बादल का वस्त्र पड़ा था ।
मैंने उसको नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया ।