भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं करूँगा कभी किसी का / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:42, 26 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  (राग शिवरञ्जनी-तीन ताल)

 नहीं करूँगा कभी किसी का अब तन-मन-धनसे अपमान।
 सबमें सदा देख प्रभुको, मैं सदा करूँगा शुचि समान॥
 परुष-व्यंग्य-निन्दा वचनोंका नहीं करूँगा मैं व्यवहार।
 सदा करूँगा सबका सुधामयी हित-वाणीसे सत्कार॥
 सबमें प्रभुके मैं अनुपम गुण-गण ही देखूँगा सब ओर।
 नमन करूँगा मैं सबके पद-कमलोंमें, हो भाव-विभोर॥
 प्राणि-पदार्थ सभी देंगे फिर मुझको नित्य परम आनन्द।
 क्योंकि सभीमें दीख पड़ेंगे मुझे नित्य सत्‌‌-चित्‌‌ आनन्द॥