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पीठ कोरे पिता-4 / पीयूष दईया
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अब आवाज़ से डरने लगा हूं
सांस में सिक्का उछालने जैसे
--स्वयं को बरजता
माथे में रुई धुनते हुए--
विदा का शब्द नहीं है।