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पीठ कोरे पिता-14 / पीयूष दईया
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मैं शर्मसार हूं कि सारे दांव जीत गया
यहां तक कि सिक्कों को मेरी जेब से
बाहर तक आने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ी
शुक्रगुज़ार हूं यह कहना न होगा
हार के आइने से बने मुझ पर
आप दिखते रहे
और जीत न सके
मुझ में भी।
पिता--