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काजल / अविनाश मिश्र
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तुम्हारी आँखों में बसा
वह रात की तरह था
दिन की कालिमा को सँभालता
उसने मुझे डूबने नहीं दिया
कई बार बचाया उसने मुझे
कई बार उसकी स्मृतियों ने