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हवा आई / केदारनाथ अग्रवाल

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हवा आई

ख़ूबसूरत वल्लरी के वेश में

और मेरी देह से लिपटी रही;

वह प्रिया है, पेड़ हूँ मैं नीम का

प्रमुदित हुआ ।


हवा आई

गुदगुदाती हंसिनी के वेश में

और मेरे नीर में तिरती रही;

वह प्रिया है, अंक हूँ मैं झील का

पुलकित हुआ ।