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मत करो स्वीकार / येहूदा आमिखाई
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मत करो स्वीकार ऐसी बारिश को
जो बहुत देर से आए
बेहतर है ठहरना ।
अपने दर्द को बनाओ
आईना रेगिस्तान का,
कहो जो कहा गया
और मत देखो पश्चिम की ओर
इन्कार कर दो
आत्मसमर्पण से
कोशिश करो इस साल भी
कि रह पाओ अगली गर्मियों में,
खाओ अपनी सूखी रोटियाँ,
बचो आँसुओं से
और मत सीखो अनुभव से
उदाहरण की तरह लो मेरे यौवन को,
लौटना रात को देर तलक
जो लिखा जा चुका है
पिछले साल की बारिश में
इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता अब ।
देखो अपनी घटनाओं को
जैसे मेरी ही घटनाएँ हों
सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा :
अब्राहम फिर अब्राहम हो जाएगा
और सारा हो जाएगी सारा