भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईंख / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:19, 4 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि रेखा |अनुवादक= |संग्रह=सीढ़...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपनी ज़मीन पर एकदम सीधा तना ईंख
कहाँ होता है इतना सीधा
कोई चाहे तो भांज ले लाठी की तरह
वक्त-बेवक्त की जा सकती है अच्छी पिटाई
पर सारी मिठाईयों में पायेगे आप इसी की मिठास

कई-कई मजबूत गाँठों और सख्त खोलों में
कहाँ से आती है इतनी ग़जब की मिठास
क्या सख्त और कड़े छिलकों में ही होती है
इसे बचा रखने की ताकत
शायद एहतियात के तौर पर बरती होगी
क़ुदरत ने इतनी हिफ़ाजत

पर कहाँ हो पाती है हिफ़ाजत
सबसे पहले ख़बर लगती है चींटियों को
फिर हवा में फ़ैलने लगती है ख़ुशबू
जड़ से उखड़ कर भी बचा लेता है अपने को
पर होते ही आहत
रिसने पसारने लगती है इनकी मिठास

खेतों,खलिहानों ,सड़कों ,गलियों को पार करती
चढ़ जाती है ऊँची अट्टालिकाओं तक
गुड़ की भेली से शाही मिठाईयों में बदलती
सीढ़ी-दर सीढ़ी

कई-कई मजबूत गाँठों और कड़े छिलकों से बना
अपनी ज़मीन पर एकदम सीधा तना ईंख
कैसे खींचता होगा धरती से
इतनी सख्ती इतनी मिठास एक साथ