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देह करी लाचार / रमेश रंजक
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कोई ना करेगा एतबार
जुलम इतने करि डारे ।
सूरज पै चादर ढक दीनी
अँधियारे में मन की कीनी
देह करी लाचार
जुलम इतने करि डारे ।
जन के प्रान, थकन के मारे,
भय से काँप रहे बेचारे
जैसे पात-बयार
जुलम इतने करि डारे ।