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दिन निकलने दे ! / रमेश रंजक

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दिन निकलने दे
ज़रा-सा दिन निकलने दे !

रास्ते आधे-अधूरे-से
दिख रहे जो तानपूरे-से
तार में सरगम सँभलने दे
थम, ज़रा-सा दिन निकलने दे !

राग जब आकार पाएगा
स्याह घेरा टूट जाएगा
ख़ून स्याही में उबलने दे
थम, ज़रा-सा दिन निकलने दे !

उँगलियाँ ख़ुद तार को छूकर
व्योम को ले आएँगी भू पर
घाटियों को आँख मलने दे
थम, ज़रा-सा दिन निकलने दे !