रमा / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
साँझ पहर दिप-वाती दिन अयलहुँ
रमा नाओं रखने छलि बाबी
माय कोरक हम पहिनुक नेना
जीवन गतिक कोन गीत गाबी ?
खड़क मचान निलय बनि चमकल
रजत-कनक सँ छम-छम माता
पिताक बटुआ मे बैसलि लक्ष्मी
कण-कण खह-खह कएल विधाता
लव -कुश बनि जननीक कोखि सँ
दू -दू सारस आँगन मे खिलायल
तरु लता केँ स्निग्ध देखि
स'र समाज घुरथि औनायल
धेलकनि पाण्डु ज'र बाबू केँ
चाकरी छोड़ि खाट पर खसलनि
खेत पथार व्याधिक संग बूड़ल
तैयो तेसर लोक मे पैसलनि
जै ओलती छल तृप्त पपिहरा
सुग्गा- चुनमुन्नीक चहचह शोर
क्षणहि मे देवराज उझललनि
शरद निशा मे आगि इन्होर
हाथ सँ करची कलम छूटि गेल
संग छोड़लनि भामिनि -भद्रा
चरण नुपुर धरा खसि टूटल
आँगन बारी भरल दरिद्रा
काॅच बयस मे सेंथु सेनुर देखि
गदगद भेली मातु सुनयना
कहुना लाज गेल दोसर घर
सुखद नोर खसबै छथि मयना
कंतक आँगन सेहो कलुष भेल
जखने निकसल वज्र चरण-रज
रैन पचीसी संग सिनेहक
लहठी फोड़ि निपत्ता पंकज
तुसारीक निस्तार कोना क' करितहुँ
उज्जर नूआ संग खाली हाथ
सेंथु सँ सेनुर अपने पोछलहुँ
आन्हर सासुक संग पीटै छी माँथ
आजुक डायन कहियो छलि लक्ष्मी
छाँह सँ भागथि अहिवातिन सभ
नोरक घृत सँ चिनुआर नीपै छी
ककरो संग नहि बाँटब कलरव
काक दृष्टि धयने ठाढ़ छथि बाहर
चानन ठोप कयने किछु लोक
आर्य भुवनक रौ वनमानुष सभ
गरदनि दाबि पठबें परलोक
नारी टा लेल केहेन नियम ई
वरन एक त' कहाएब सती
अपन कान्ताक छोड़ि घ'र मे
कहिया धरि तकबें अवला रति?