भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अन्तर के तार बजे / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:42, 23 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=अतल की ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अन्तर के तार बजे
बन्धु ! बार-बार बजे
किसने छू दिया मुझे
प्रातः के चार बजे
सिहर उठा सारा तन
फूल-फूल हुआ बदन
नींद गई, खुले नयन
तन-मन में एक नदी
उतर गई धीरे से
लहरों की थापों से
काँपते कगार बजे ।
दत्त-चित्त नील व्योम
उमस, घुटन, हुई होम
पुलकित है रोम-रोम
प्यार-सी एक छुअन
तैर गई नस-नस में
प्राण में धमनियों में,
अनदिखा सितार बजे ।