अनिल जनविजय(चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:18, 23 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=अतल की ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
सपने !
जो आदमी के
दिलोदिमाग में चौकस होते हैं
सोने नहीं देते उसे पूरी नींद ।
दरअसल —
हौसले की छाती में ही
पलता है कोई सपना
सपना जितना बड़ा होता है
आदमी उतना ही खरा
खरे आदमी से
कोई खतरा नहीं होता
किसी के लिए
सपने भटकते रहते हैं शायद
उसी के लिए ।