इतनी उदास क्यों हो? / रश्मि रेखा
बहुत लम्बी लड़ाई से हासिल
शिखरों को ध्वस्त होते देखना
देखना अर्थहीन होते प्रतिमानों को
मिटते हुए शिला-लेखों को देखना
गुजरना है पीड़ा के समुन्द्र से
अपने भविष्य को ताकती
स्तब्ध कविता
इतनी उदास क्यों हो
अभी भी बचा हुआ हैं तुम्हारा अहसास
हमारी धमनियों में रक्त सा
धरती में छिपे बीज सा अंकुरित
आतुर उगने के लिए
अभी पोंछने हैं तुम्हें उनके आँसू
जिनके पसीने पर टिकी हैं सभ्यता
दिलानी है उन्हें हक़ की रोटी
मिटानी हैं शताब्दियों की उनकी दासता
कुछ भी तो ख़त्म नहीं हुआ है
शोषितों को सीढ़ियाँ बना
शीर्ष चढ़े लोगों ने
आसमानी सितारों में बना ली
अपनी दुनिया
लेकिन अँजुरी भर जल ही तो
पूरा समंदर नहीं होता
अपने भविष्य को ताकती
स्तब्ध कविता
तुम इतनी उदास क्यों हो
अभी भी बचा हुआ है तुम्हारा अहसास
हमारी धमनियों में रक्त सा