भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गोदोहन / सूरदास
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:11, 3 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास |संग्रह=सूर सुखसागर / सूरदास }} मैं दुहिहौं मोह...)
मैं दुहिहौं मोहिं दुहन सिखावहु ।
कैसें गहत दोहनी घुटुवनि, कैसैं बछरा थन लै लावहु ।
कैसैं लै नोई पग बाँधत, कैसे लै गैया अटकावहु ।
कैसैं धार दूध की बाजति, सोई सोइ विधि तुम मोहिं बतावहु ।
निपट भई अब साँझ कन्हैया, गैयनि पै कहुँ चोट लगावहु ।
सूर श्याम सौं कहत ग्वाल सब,धेनु दुहन प्रातहि उठि आवहु ॥2॥