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किस्सा गोपीचंद - 5 / करतार सिंह कैत

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तर्ज: सत्यवान के घरां चाल दुख भर्या करैगी
राज खोस कै जोग दिवा दिया और बता के चाह्वै सै
हे री मेरी माँ
मैं नाट्या तूं मानी कोन्या ईब क्यूं रूधन मचावै सै
हे री मेरी माँ...

हाथ पकड़ तनै काड्या घर तै तेरी पड़े अक्ल पै पत्थर री
न्यू कहै जोग दवाऊं अमर कराऊं होरी थी घणी आतुर री
तनै इतना धर दिया बोझ मेरे सिर कोन्या देख्या जात्थर
लई पैर कुल्हाड़ी मार आप भला इब रोई क्यां खातर री
तूं लिकड़ी घणी चातर इब क्यूं झूठे ढोंग रचावै सै
हे री मेरी माँ...

नौ महीने तक बोझ मरी फेर जाम्या पाड़ कै पेट तनै
माँ बेटे की जो हो जग म्है वा दई मर्यादा मेट तनै
माँ की ममता खत्म करी इसा करड़ा करकै ढेठ तनै
बिन सांकल बिन कुण्डी ताला बन्द कर्या मेरा गेट तनै
खुद कर लिया मलियामेट तनै इब के गोपी चंद जावै सै
हे री मेरी माँ...

मेरी सोला राणियां का महलां म्हं मिरगां जैसा लारा
मेरे जीते जी दई रांड बणा तनै धर्या कंवर पै आरा
मेरे रंगमहलां का डाण तनै आज कती बणा दिया ढारा
इब किसनै बाबू कहैगी बता तेरी पोती कन्या बारा
कोन्या चालै चारा री क्यूं ज्यादा मनै सतावै सै
हे री मेरी माँ...

गुरु भजन सिंह पेगे वाले का कहन पुगाणा आच्छा सै
तेरे राजपाट नै सिर पै धर ले मनै जोग कमाणा आच्छा सै
तेरे शाल दुशाले ना चाहिए मनै भगवां बाणा आच्छा सै
तेरे खीर खांड के भोजन कुछ ना मांग कै खाणां आच्छा सै
हर का घणा आच्छा सै करतारा सिंह छनद गावै सै
हे री मेरी माँ...