भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठहरा हुआ एहसास. / इला कुमार

Kavita Kosh से
Sneha.kumar (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 09:50, 3 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: एक एक बीता हुआ क्षण हाँ पलों मे फासला तय करके वर्षो का सिमट आता है सिहर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक एक बीता हुआ क्षण

हाँ

पलों मे फासला तय करके वर्षो का

सिमट आता है सिहरनो में

बंध जाना ज़ंजीरों से मृदुल धागों में

सिर्फ़ एक जगमगाहट,


कितनी ज़्यादा तेज १०० मर्करी की रोशनियों से

कि

हर वाक्य को पढ़ना ही नहीं सुनना भी आसान

कितनी बरसातें आकर गई


अभी तक मिटा नहीं नंगे पावों का एक भी निशान

क्या इतने दिनों में किसी ने छुआ नहीं

बैठा भी नहीं कोई?


अभी भी दूब

वही दबी है जहाँ टिकी थी, हथेलियाँ, हमने