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मैं कविता का अहसानमन्द हूँ / अनिल जनविजय
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यदि अन्याय के प्रतिकारस्वरूप
तनती है कविता
यदि
किसी आने वाले
तूफ़ान की अग्रदूत
बनती है कविता
तो मैं कविता का अहसानमन्द हूँ
अधजली-अधबुझी
बाईस की बीड़ी का
बेरोज़गारी से त्रस्त
थकी-युवा पीढ़ी का
आक्रोशमयी स्वर बन
जलती है कविता
तो मैं कविता का अहसानमन्द हूँ
जिनकी
ज़िन्दगी मशीन है
भूख कुलचिह्न है
रोटी एक जुगाड़ है
खोखली पुकार है
उनकी गुहार बन
गरजती है कविता
तो मैं कविता का अहसानमन्द हूँ
भट्टी पर उबलते आकाश में
मौसम के बढ़ते तनाव में
मज़दूर का, किसान का
फैलते लाल निशान का
बढ़ते घमासान का
सहसूर्य बनकर चलती है कविता
तो मैं कविता का अहसानमन्द हूँ