Last modified on 27 अक्टूबर 2014, at 14:02

आरोहित मन / अमृता भारती

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 27 अक्टूबर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता भारती |संग्रह=आदमी के अरण्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पुरातन समय में
कभी
मेरे मन का फूल
ऊपर चला गया था
बढ़ते पानी के साथ बढ़ता हुआ —

एक समर्पित आरोहण ।

फिर किसी नए क्षण में
पानी नीचे उतर गया —

पर
मेरे मन का फूल
अब भी ऊपर है

पँखुड़ियों के बीच
वह जीवित है
अपने बीज के अन्दर
मिट्टी की परतें हटाता
पंक में धँसी अपनी जड़ों को काटता

मेरे मन का फूल
जीवित है —

धरती नहीं
अब आकाश सरोवर है ।