भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुम्भज्वर / धरीक्षण मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 28 अक्टूबर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरीक्षण मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} [[Cat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अमृतध्वनि छन्द
डकडर बिना न जात बा, अइसन बा बरजाद ।
आइल तीर्थ प्रयाग से, कुम्भज्जबर परसाद ॥
कुम्भज्जवर परसादध्धर तन कम्पत्थरथर ।
आँखझ्झरझर नाकसरसर साँस्घ्घरघर ॥
बन्दघ्घर मन मन्दत्तर निस्पन्ददिदनभर ॥
तारच्छिकत कपारध्धिकत पधार डकडर ॥12॥