Last modified on 4 जनवरी 2008, at 01:56

रतन वर्मा-2 / भारत यायावर

Linaniaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 01:56, 4 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत यायावर |संग्रह=मैं हूँ, यहाँ हूँ / भारत यायावर }} एक...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


एक नाला है हमारे सामने

जो हमसे बेख़बर बहता ही जा रहा है

और नाले से बेख़बर तुम

बहते ही जा रहे हो, रतन वर्मा


बचपन में पिता की मृत्यु

फिर माँ की मृत्यु

फिर अपने ही बचपन की मृत्यु

आदमी एक और मृत्यु तीन !


तीन-तीन लाशों को हृदय में बिठाकर

कब तक घूमते रहे तुम

दरभंगिया रतन वर्मा ?


मामा जी ने पिता का प्यार दिया

मामी जी ने माँ का

पर दरभंगा ने क्या दिया

बुरी संगतियाँ

बुरी आदतें

जीवन का वृक्ष जो बड़ा होता

फैलता-फूलता

दरभंगे ने जड़ें ही काट डालीं


बिना जड़ों के कब तक रहता आख़िर

पत्नी के साथ चला गया देहरादून


वहाँ देहरादून में लोहारी का काम किया

विश्वास नहीं होता तुम्हें न !

ख़ून बेचा

कपड़े की दुकान में सेल्समैन का काम किया


पत्नी और तीन बच्चे

और मामूली-सी पढ़ाई

और अजनबी एक शहर

ऎसे में गुज़ारा करना मामूली नहीं है भाई


फिर हज़ारीबाग की कोयला ख़दानों की नौकरी

और अब एजेन्ट बन बिहार का सालों-साल भ्रमण

न सोने का कोई ठिकाना, न खाने का

ऎसा मौका कहाँ लगता है यायावर

कि आत्मीय लोगों के बीच

जी हल्का करूँ


अब नाले में उफ़ान आ रहा है

नाला हमारे ऊपर से होकर बह रहा है


इतने भावुक मत बनो, रतन वर्मा !

रतन वर्मा !

आज तुम्हारी कहानी सुनकर लगा

कि अपनी ही कहानी सुन रहा हूँ

अपने ही जीवन-संघर्षों को याद कर रहा हूँ

पर थोड़ा फ़र्क है रतन वर्मा

जैसा कि हर एक कहानी का दूसरी कहानी से होता है

ख़ैर, फिर कभी

फिर कभी सुनाऊंगा अपनी कहानी