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मंज़िलों से जो प्यार करते हैं / रविकांत अनमोल

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मंज़िलों से जो प्यार करते हैं
रुक के कब इंतिज़ार करते हैं

प्यार में ग़म नसीब हों जिनको
और शिद्दत से प्यार करते हैं

जो है तक़दीर में वही होगा
दिल को क्यूं बेक़रार करते हैं

साथ गुज़रे हुए वो पल अब भी
दिल मिरा बेक़रार करते हैं

हम सज़ा बार-बार पा कर भी
ग़लतियां बार-बार करते हैं

तुम मुसाफ़िर हो तो सफ़र में रहो
रास्ते इंतिज़ार करते हैं