भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये हुनर अपना आसमानी है / रविकांत अनमोल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:06, 10 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकांत अनमोल |संग्रह=टहलते-टहलत...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बात छोटी है बा-मआनी है
ये हुनर अपना आसमानी है

मेरी आंखों में ये जो पानी है
ये तिरे प्यार की निशानी है

तू हमेशा से है मिरे दिल में
बाक़ी दुनिया तो आनी जानी है

तितलियां छेड़ती हैं फूलों को
देखिए रुत बड़ी सुहानी है

पेड़ पर नाचने लगे पत्ते
हौले हौले बरसता पानी है

जो तुम्हें नित-नई सी लगती है
ये कहानी बड़ी पुरानी है

आँख जो सूखती नहीं मेरी
क्या कहूँ इसमें कितना पानी है