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उठा कर पटक दिया है तुमने / केदारनाथ अग्रवाल
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उठा कर पटक दिया है तुमने
मुझ पर धरे अंधकार को पहाड़ के नीचे
और वह हो गया है ध्वंस, चकनाचूर
और मैं
- हो गया हूँ मुक्त--पूरा मुक्त--
भीतर भी भारहीन--
बाहर भी भारहीन--
स्वच्छंद निकल पड़ने के लिए,
रंगीन फौवारे की तरह उछल पड़ने के लिए
मैदान में मोर की तरह नाच उठने के लिए
अब मैंने जाना
- सबेरे की सुनहरी किरन !
तुम्हें मुझ से प्यार है
(रचनाकाल : 30.09.1960)