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तमाम क़ज़िया मकान भर था / राशिद जमाल
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तमाम क़ज़िया मकान भर था
मकान क्या था मचान भर था
ये शहर-ए-ला-हद-ओ-सम्त मेरा
ग्लोब में इक निशान भर था
रिवायतों से कोई तअल्लुक़
जो बच रहा पान-दान भर था
गुमान भर थे तमाम धड़के
तमाम डर इम्तिहान भर था
तुमानियत बारिशों में हल थी
जो ख़ौफ़ था साएबान भर था
जो जस्त थी एक मुश्त भर थी
जो शोर था आसमान भर था