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ज़िंदगी दूर हुई जाती है / सूफ़ी तबस्सुम

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ज़िंदगी दूर हुई जाती है
और कुछ मेरे क़रीब आ जाओ
जल्वा-ए-हुस्न को कुछ और ज़िया-रेज़ करो
अपने सीने से उभरने वाले
आतिशीं साँस की लौ तेज़ करो
मेरी इस पीरी-ए-दरमांदा की
ख़ुश्क़ और ख़स्ता भी ख़ाकिस्तार अफ़्सुर्दा में
सोज़-ए-ग़म को शरर-अँगेज़ करो
यूँ ही पल भर ही सही
मेरे क़रीब आ जाओ
ज़िंदगी दूर हुई जाती है