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दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त / वसी शाह

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दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त
और मिल गई ख़ुशी तो उछाले तुम्हारे ख़त

सब चूड़ियाँ तुम्हारी समुंदर को सौंप दीं
और कर दिए हवा के हवाले तुम्हारे ख़त

मेरे लहू में गूँज रहा है हर एक लफ़्ज़
मैं ने रगों के दश्त में पाले तुम्हारे ख़त

यूँ तो हैं बे-शुमार वफ़ा की निशानियाँ
लेकिन हर एक शय से निराले तुम्हारे ख़त

जैसे हो उम्र भर का असासा ग़रीब का
कुछ इस तरह से मैं ने सँभाले तुम्हारे ख़त

अहल-ए-हुनर को मुझे पे ‘वसी’ ए‘तिराज है
मैं ने जो अपने शेर में ढाले तुम्हारे ख़त

परवा मुझे नहीं है किसी चाँद की ‘वसी’
ज़ुल्मत के दश्त में हैं उजाले तुम्हारे ख़त