घर में यूँ टूट जाती हैं कुछ चीज़ें
जैसे किसी अदृश्य हाथ ने दे दिया हो धक्का,
जो जानबूझ कर तोड़ता हो चीज़ें ।
ये अदृश्य हाथ न मेरा है न तुम्हारा
ये उन सख़्त नाखूनों वाली लड़कियों में से भी कोई नहीं है
और न ही धरती की गति से टूटी हैं ये चीज़ें
ये सब किसी व्यक्ति या वस्तु से नहीं हुआ है
नारंगी दोपहरों का भी इनमें कोई हाथ नहीं
न ही पृथ्वी पर पसरी रात का
न ये चीज़ें हमारी नाक से टकराई हैं
न हमारी कोहनी से
न ही देह के फैलाते हुए पिछले हिस्से या टखने से
न ही हवा ने इन्हें गिराया है.
टूट गई तश्तरी, गिर गया लैम्प
एक-एक कर के लुढ़क गए सारे फूलदान ।
वह गुलदान जो अक्तूबर के शबाब में
लहलहाता था गहरे लाल रंग से भरा
ऊब गया वह उन बैंगनी रंगों से
और दूसरा खाली गुलदान भी गोल-गोल लुढ़कता है सारी सर्दियों भर
तब तक जारी रहा उसका यह घूर्णन
जब तक शेष रहा उसका अस्तित्व
अन्त में रह गया सिर्फ गुलदान का कुछ चूरा,
एक खण्डित स्मृति, चमचमाती गर्द ।
और वह घड़ी जिसकी टिक-टिक
पर चलती थी ज़िन्दगी
जिससे बंधा था हमारे गुज़िश्ता वक़्त का राज़
जिसने एक-एक कर दिए थे हमें वे अनगिन घण्टे
शहद की मिठास में लिपटे और कभी बिलकुल चुप
जिनके दौरान हम करते थे कितने काम
और दुनिया होते रहते कितने जन्म
गिर गई वो घड़ी भी
और काँच के टुकड़ों के बीच
सिसकती रहीं उसकी नाज़ुक नीली सूइयाँ
छिटक कर बाहर गिर पड़ा उसका दिल
ज़िन्दगी चलती रहती है काँच का चूरा बनाते हुए,
जुटते जाते हैं बोशीदा कपड़ों के ढेर
और ज़िन्दगी के अरूप लम्हे
समय के इस चक्र में जो बचा रह जाता है
वह समुद्र में तैरते किसी जहाज़ पर बने एक द्वीप-सा है
बनावटी और नश्वर
और घिरा हुआ है, क्रूर, तूफ़ान की धमकियों और
बेसाख़्ता टूटने के खतरों से
चलो हम जोड़ लें अपने सारे खजाने एक थैले में—
वे घड़ियाँ, तश्तरियाँ, ठण्ड की जकड़न से चटके प्याले
और उन्हें बहा आएँ चट्टानों से टकराती
और नदी सी विशाल किसी खौफ़नाक समुद्र की लहर में
आओ दुआ करें कि समुद्र की मेहनतकश लहरें
जोड़ दे हमारे टूटे हुए असबाब ।
कितनी गैर ज़रूरी चीज़ें
जिन्हें नहीं तोड़ा किसीने
लेकिन जो टूट गईं बेसाख़्ता
भावना मिश्र द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित