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खूबई दौलत रोरत जा रये / महेश कटारे सुगम
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खूबई दौलत रोरत जा रये ।
घींचें रोज़ मरोरत जा रये ।
बान्धत फिरें बैर के फेंटा,
प्यार की गाँठें छोरत जा रये ।
सौने कौ होवे के लानें,
पोखर तक में लोरत जा रये ।
तनक तनक कामन के लानें,
हाथ हगन के जोरत जा रये ।
कर रये ऐसौ काम कायखौं,
दुक कें न्यौरत न्यौरत जा रये ।
देखौ तौ हीरन के धोखें,
ककरा सुगम बटोरत जा रये ।