हमारे पास रोशनियां नहीं हैं
हम जहां खड़े हैं
वह डूबते समय का सच है
अक्सर गीली रेखाएं
हमारे पास चिंगारी की तरह फूटती हैं
हम दूर से देखते हैं जंगल में
चमक बाकी है
चीज़ें और रूझान लपकते हैं
एक ख़ारिज सिरे की बेमाप दौड़ के लिए
लेकिन यह आभास हमारी चेतना का नहीं
अस्पष्ट और उलझी हुई वितृष्णा का है
एक बूंद गिरती और बाहर आती है
थोड़ी देर के लिए
हम घुल जाते हैं अनजाने परिदृश्य में
रक्त में संशोधन नहीं हो सकता
हार और जीत के कई सबक हमारे पास हैं
लेकिन इसके अलावा नहीं जान पाए
कि एक सच चट्टानों पर बैठा
लिखता है हमारी वास्तविक हार
जहां हम पीछा करते हैं
अपनी ही खोयी उंगलियों का
स्वर्ग और नरक में
सिर्फ़ इतना-सा अंतर है कि
एक का द्वार भीतर की ओर खुलता है
एक का बाहर की ओर
हमारे पास रोशनियां नहीं हैं
हम खड़े हैं कटे पेड़ों के नीचे
मुमक़िन है हमारे नंगे सर
सोच रहे हों छाया के बारे में