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कवि-2 / वीरेन डंगवाल

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मैं हूँ रेत की अस्फुट फुसफुसाहट

बनती हुई इमारत से आती ईंटों की खरी आवाज़


मैं पपीते का बीज हूँ

अपने से भी कई गुना मोटे पपीतों को

अपने भीतर छुपाए

नाजुक ख़याल की तरह


हज़ार जुल्मों से सताए मेरे लोगो !

मैं तुम्हारी बद्दुआ हूँ

सघन अंधेरे में तनिक दूर पर झिलमिलाती

तुम्हारी लालसा


गूदड़ कपड़ों का ढेर हूँ मैं

मुझे छाँटो

तुम्हें भी प्यारा लगने लगूँगा मैं एक दिन

उस लालटेन की तरह

जिसकी रोशनी में

मन लगाकर पढ़ रहा है

तुम्हारा बेटा।