भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुर्सी / राजा पुनियानी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:16, 25 दिसम्बर 2014 का अवतरण
बैठने वाले का
इन्तज़ार कर रही थी
बैठी कुर्सी
एक दिन अचानक
वह तो चल पड़ी
क्या करेगा
उस पर बैठने वाला अब ?
मूल नेपाली से अनुवाद : कालिका प्रसाद सिंह