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बादल घिर आए / त्रिलोचन

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ताप गया पुरवा लहराई

दल के दल घन ले कर आई

जगी वनस्पतियाँ मुरझाई

जलधर तिर आए


बरखा, मेघ-मृदंग थाप पर

लहरों से देती है जी भर

रिमझिम-रिमझिम नृत्य-ताल पर

पवन अथिर आए


दादुर, मोर, पपीहे, बोले

धरती ने सोंधे स्वर खोले

मौन, समीर तरंगित हो ले

यह दिन फिर आए

(रचना-काल - 22-6-48)