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नवजीवन के सिंहद्वार पर / त्रिलोचन

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नई चेतना के रथ पर आरूढ़

नई शक्ति से भरे हुए सानंद

अपने पथ को पर करो स्वच्छंद

बाधाओं की ओर न आँख उठाओ


नव मनुष्यता को ले कर विश्वास

अधिकारी मनुष्य के अत्याचार

के विरूद्ध करते ही चलो प्रहार

अत्याचारी को निस्तेज बनाओ


पिछले दिन भी इसी तरह बीते हैं

जीते हैं जो तब के अब कहते हैं

जीवित जन क्या पड़े-पड़े रहते हैं

पराजयों में गान विजय के गाओ

(रचना-काल - 23-6-48)