भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपने सफर पर / अरविन्द कुमार खेड़े

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 26 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द कुमार खेड़े |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ नहीं है मेरे झोले में
सिवाय कुछ दुआओं के
कुछ बद्दुआओं के
दिन भर जो कमा कर लाता हूँ
रात को ही करनी पड़ती हैं अलग-अलग
आहिस्ता से सहेज कर
रखता हूँ दुआओं को अलग
बद्दुआओं की गठरी बना कर
सिरहाने रख सो जाता हूँ
पौ फटते ही दुआओं को
डाल देता हूँ आकाश में
चोंच भर दानों की तलाश में
पेट लिए
उड़ान भरने को निकले पंछी
चुग लेते हैं हाथों-हाथ
आज की रात
और अगली सुबह के लिए
झोला लेकर मैं चल पड़ता हूँ
अपने गंतव्य पर
अपने सफर पर.