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मैं दीप जलाती हूँ / त्रिलोचन

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मैं दीप जलाती हूँ

पथ अंधकार का दुखदायी

संध्या तारा ले कर आई

कुछ अपना कुछ दुनिया का बल

जीवन में लाती हूँ


भूले भटके धीरज पाएँ,

पथ पाएँ, आश्वासन पाएँ,

आएँ इस ओर निमंत्रण है

इस लौ मे गाती हूँ


पछताना क्या, थक जाना क्या,

अलसाना क्या, भय खाना क्या,

जब तक साँसा तब तक आसा

यह मंत्र सुनाती हूँ


पथ पर चल कर जो बैठ गए

वे क्या देखेंगे प्रात नए

जीवन का अमृत मिला जिन को

मैं उन्हें चलाती हूँ
(रचना-काल - 15-07-48)