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धीरे धीरे पुरवैया लहराने लगी / त्रिलोचन
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धीरे धीरे पुरवैया लहराने लगी
आज क्या तरंग आई
घनघोर घटा छाई
तपी दुनिया ने आज
छाँह ठंडी ठंडी पाई
बगलों की ध्वजा मेह तले
एक पर एक फहराने गी
सभी को उछाह आया
सभी ने कुछ ऐसा पाया
जिसे जानकर देखकर पूरी
धरती ने कंठ खोलकर गाया
आज बदली हुई है नदी, दीख पड़ेगा,
नए तान-पलटों में गहराने लगी
एक बार दृष्टि डाली
फूल की हँसी चुरा ली
देखो बिजली को आज
मनचाही ऋद्धि पा ली
मेघ मादल बजाए अग जग गान गाए
रिमझिम की लहर छहराने लगी
(रचना-काल -8-10-56)