भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऊधो रक्त श्वेत में डूबा / आनन्दी सहाय शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:54, 6 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनन्दी सहाय शुक्ल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ऊधो रक्त श्वेत में डूबा ।
कोड़ों ने है खाल उधेड़ी यह दुश्मन का सूबा ।।
चन्दन वन की रुह देह में
चौमुखि सुरभि बिखेरी
यत्न आदमी रह पाने के
बने राख की ढेरी
सोने के आराध्य यहाँ के चाँदी की महबूबा ।।
नाजी शिविर यातना चैम्बर
पग-पग क्रूर कसाई
जड़ से उखड़े धरती छूटी
मुँह बाए है खाई
मुँह बाए है खाई
धरा रह गया सूने दीवट हर रोशन मनसूबा ।।
अपमानों का केंसर काटे
छीजे धूनी मनीषा
उगते शूल, त्रिशूल शून्य में
सब कुछ जकड़े मीसा
शबनम रतन धूल पर बिखरे अर्ध्य सूर्य से ऊबा ।।