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ऊधो रक्त श्वेत में डूबा / आनन्दी सहाय शुक्ल

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ऊधो रक्त श्वेत में डूबा ।
कोड़ों ने है खाल उधेड़ी यह दुश्मन का सूबा ।।

चन्दन वन की रुह देह में
चौमुखि सुरभि बिखेरी
यत्न आदमी रह पाने के
बने राख की ढेरी
सोने के आराध्य यहाँ के चाँदी की महबूबा ।।

नाजी शिविर यातना चैम्बर
पग-पग क्रूर कसाई
जड़ से उखड़े धरती छूटी
मुँह बाए है खाई
मुँह बाए है खाई
धरा रह गया सूने दीवट हर रोशन मनसूबा ।।

अपमानों का केंसर काटे
छीजे धूनी मनीषा
उगते शूल, त्रिशूल शून्य में
सब कुछ जकड़े मीसा
शबनम रतन धूल पर बिखरे अर्ध्य सूर्य से ऊबा ।।