Last modified on 6 जनवरी 2008, at 06:16

मैं तुम्हारा / त्रिलोचन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:16, 6 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=सबका अपना आकाश / त्रिलोचन }} मैं तुम्ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं तुम्हारा


मैं तुम्हारा

बन गया तो

फिर न हारा

आँख तक कर

फिरी थक कर

डाल का फल

गिरा पक कर

वर्ण दृग को

स्पर्श कर को

स्वाद मुख को

हुआ प्यारा


फूल फूला

मैं न भूला

गंध वर्णों

का बगूला

उठा करता

गिरा करता

फिरा करता

नित्य न्यारा

(रचना-काल -9-2-62)