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बानी / विजेन्द्र
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बेमन, बेमन रहता हूँ
बादल आये
आतप आये
बिना बिताये सहता हूँ
जो देखा-
जो सुना, चखा रस हूँ
अपनी बानी कहता हूँ ।
नहीं हुआ
जो चाहा हर दम
सपना देखे आता हूँ
जली आँच
दीपित होती है
लोहा जैसे दहता हूँ
उदय छोड पीछे मैं आया
मर्म छिदा तब गाना गाया
अस्त देख अब लहता हूँ ।
2001