भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बखत / विजेन्द्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:10, 11 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेन्द्र |संग्रह=भीगे डैनों वाल...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुरे बखत की बात झेलता
किसको बोल बताऊँ
उधडी खाल पै
लगा नमक है
कहता गीत सुनाऊँ
कुत्ता खावै माखन रोटी
खुद चाबै
पुट्ठे की बोटी।
मैं तो खाक
छानता डोलूँ
बैठा ले तू अपनी गोटी।
भूख लगे तो
ज्वाला पी लँू
ठूर्री चनंे चबाऊँ
बुरे बखत की बात झेलता
किसको बोल बताऊँ ।
ऊपर से लोहा लागे
बाँस है
अन्दर पोला
बजा-बजा तू
ढोल-मजीरे
गाऊँ नख-शिख ढोला।
मुझको वेद बखाने अदबद
खुद मसके
बिरियानी
मेरी फसल को
दाझ सुखाबै
चंपा है हरियनी
एक बात तू हँसके कहता
करता लीपा-पोती
साँच को ठेल परे करता है
पोये नकली मोती।
मुझ पर हरदम
गाज गिर रही
तू बौराया फिरता
किसकी आँख
पडूँ मैं जाकर
तिनका मैं हूँ
बुरे बखत की बात झेलता
किसको बोल बताऊँ