Last modified on 11 जनवरी 2015, at 09:42

कलिराज / विजेन्द्र

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:42, 11 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेन्द्र |संग्रह=भीगे डैनों वाल...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक जीभ से प्यार करूँगा
एक से दूँगा गाली
एक से तेरी खाल उधेड़ूँ
एक से छिनू थाली।
सौ-सौ जीभें लप लप करती
सौ-सौ जहर बुझी हैं।
सब-सब मिलकर
कहती मुझको
तू भिनगा है
तू तिनका है।
एक जीभ से जड़ को मारूँ
एक से सीचूँ डाली
जो ना समझे उसकी भाखा
उसको राह दिखावे।
भूम्मि है तेरी
छत्रप तेरे
ख़बरें छपती तेरे
कहने को तू सब कुछ मेरा
पेट है रखता खाली।
धर्म की ओट में खून पिएगा
लोग कहेंगे दानी
बिन फूटे ही अँधा होऊँगा
बिना दाम का दासा
मैं समझूँगा भाग खुल गये
तू फैंकेगा पाँसा
एक जीभ से कपट चलावै
एक से नीत बघारै
अंदर समझे कुता मुझको
फिर भी भ्रात पुकारे
एक से मेरी आँत लगावै
एक से पुन्य कमावै
मैं समझूँगा मित है मेरा
भीतर घात लगावै।
लीपा-पोती करै रात दिन
साँच को धता बतावै।
एक से बोले हर-हर गंगा
एक से सैंध लगावै
एक से करै जिब्हे आदमी
एक से प्यार जतावै।
धन से मारे
धन से जीते
गुणोें की खान कहावै।
कोई राजा
कोई परजा
तू कलिराज कहावै।
           2004