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अयाचित झोंका / विजयदेव नारायण साही

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 हो गया कम्पित शरद के शान्त, झीने ताल-सा
      तन
      आह, करुणा का अयाचित एक झोंका
सान्त्वना की तरह मन की सतह पर लहरा गया
      कहाँ से उपजा ?
      कहाँ को गया ?