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धिराणी / कन्हैया लाल सेठिया
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तेरह सौ बरसां स्यूं बेसी
जूनी राजस्थानी !
सदी सातवीं स्यूं अब तांई
बिना टूट इतिहास,
जिण साहित में सकल विधावां
पायो सतत विकास,
हिन्दी री कविता री सिरजक
मीरा दरद दिवानी।
लाखां लाख सबद स्यूं जिण रो
भर्यो पुर्यो भंडार,
मौलिक सहज व्याकरण सुन्दर
ज्यूं सोळै सिणगार,
सोक्यूं हूंतां थकां, बापड़ी बाजै
आज धिराणी !
कोनी लोतर जायोड़ा में
जद के हूवै उपाव ?
आ सतवंती खोल दिखावै
किण नै निज रा घाव ?
इण रो सरबस ठग्यो जकां नै
आ लागै अणखाणी !