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टुइयाँ थी एक चतुर बोल गई / केदारनाथ अग्रवाल

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टुइयाँ थी एक चतुर बोल गई

दुर्दिन में छन्द-अर्थ खोल गई


सागर पर एक तड़ित तैर गई

मिनटों में अन्धकार पैर गई


आया था संकट घन मार गया

फूलों की छड़ियों से हार गया